आचार्य श्रीराम शर्मा >> व्यक्तित्व परिष्कार की साधना व्यक्तित्व परिष्कार की साधनाश्रीराम शर्मा आचार्य
|
0 |
नौ दिवसीय साधना सत्रों का दर्शन दिग्दर्शन एवं मार्गदर्शन
6
प्रात: प्रणाम
प्रात: ध्यान एवं आरती के बाद सभी साधक अखण्ड दीप दर्शन एवं वन्दनीया माता जो को प्रणाम करने जाते हैं। इस अवधि तक तथा इस क्रम में मौन बनाये रखना चाहिए। मौन से मानस अन्तर्मुखी होता है और तीर्थ चेतना में अवगाहन का अधिक लाभ प्राप्त होता है। बातचीत से अपना मन भी होता है तथा अन्य साधकों के चिन्तन-प्रवाह में भी विध पैदा होता। इसलिए जागरण से यज्ञ होने तक मौन बनाये रखना उचित भी है और आवश्यक भी।
अखण्ड दीप दर्शन के साथ उस अखण्ड चेतना का बोध करना चाहिए जो जीवन के प्रवाह को सतत बनाये रखती है। उसमें पू. गुरुदेव की आभा देखी जा सकती है। लोक कल्याण का संकल्प लिए वे अखण्ड दीप-शिखा की तरह सतत प्रकाशित हो रहे हैं। अपना स्नेह उनके साथ जोड़कर हम भी उस दिव्य ज्योति की एक किरण बनने का सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं।
वन्दनीया माता जी को प्रणाम करते हुए बोध करें, कि जिस मातृ सत्ता का ''नमस्तस्यै-नमस्तस्यै" कहकर नमन किया गया है, वही हमारे कल्याण के लिए प्रत्यक्ष देह में स्थित है। भगवान श्री राम के कृपा पात्र बनने पर भी मातृ शक्ति का आशीष पाकर भक्तराज हनुमान के मुख से स्वभावत: निकला था-''अब कुत कृत्य भयउ मैं माता, आशीष तव अमोघ विख्याता।'' श्रीराम के काज के लिए हमारे अन्दर भी ऐसी उमंग जागे कि मातृ शक्ति का अमोघ आशीर्वाद हम पर भी बरस पड़े।
परम पूज्य गुरुदेव की चरण पादुकाओं को नमन करते हुए भावना करें कि दिव्य चेतना के रूप मे संव्याप्त प्राण प्रवाह में हम सराबोर हो रहे हैं। महाप्राण द्वारा इस मानव जीवन को सार्थक बनाने की शक्ति प्रदान की जा रही है।
|
- नौ दिवसीय साधना सत्रों का दर्शन दिग्दर्शन एवं मार्गदर्शन
- निर्धारित साधनाओं के स्वरूप और क्रम
- आत्मबोध की साधना
- तीर्थ चेतना में अवगाहन
- जप और ध्यान
- प्रात: प्रणाम
- त्रिकाल संध्या के तीन ध्यान
- दैनिक यज्ञ
- आसन, मुद्रा, बन्ध
- विशिष्ट प्राणायाम
- तत्त्व बोध साधना
- गायत्री महामंत्र और उसका अर्थ
- गायत्री उपासना का विधि-विधान
- परम पू० गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा की जीवन यात्रा